श्रमिक
शेषनाग के फन पर धरती !
हुई नहीं है उर्वर
महाजनों के धन पर धरती !
सोना-चाँदी बरसा है
नहीं ख़ुदा की मेहरबानी से,
दुनिया को विश्वास नहीं होता है
सारी ख़ुशहाली का कारण,
दिन-दिन बढ़ती
वैभव-लाली का कारण,
केवल श्रमिकों का बल है !
जिनके हाथों में
मज़बूत हथौड़ा, हँसिया, हल है !
जिनके कंधों पर
फ़ौलाद पछाड़ें खाता है,
सूखी हड्डी से टकराकर
टिकी हुई है धरती,
इन श्रमिकों के बल पर ही
दीखा करती है
इनकी ताक़त को
दुनिया का इतिहास बताता है !
इनकी हिम्मत को
दुनिया का विकसित रूप बताता है !
सचमुच, इनके क़दमों में
भारीपन खो जाता है !
सचमुच, इनके हाथों में
कूड़ा-करकट तक आकर
श्रमिकों के तन की क़ीमत है !
इसीलिए
श्रमिकों के पीछे दुनिया चलती है ;
जैसे पृथ्वी के पीछे चाँद
गगन में मँडराया करता है !
श्रमिकों से
आँसू, पीड़ा, क्रंदन, दुःख-अभावों का जीवन
घबराया करता है !
श्रमिकों से
बेचैनी औ’ बरबादी का अजगर
संस्कृति का भव्य-भवन,
इनके श्रम पर ही आधारित है
हर दैविक-भौतिक संकट में
ये बढ़ कर आगे आते हैं,
इनके आने से
त्रस्त करोड़ों के आँसू थम जाते हैं !
भावी विपदा के बादल फट जाते हैं !
पथ के अवरोधी-पत्थर हट जाते हैं !
जैसे विद्युत-गतिमय-इंजन से टकरा कर
प्रतिरोधी तीव्र हवाएँ
सिर धुन-धुन कर रह जाती हैं !
श्रमधारा कब
अवरोधों के सम्मुख नत होती है ?
कब आगे बढ़ने का
दुर्दम साहस क्षण भर भी खोती है ?
सपनों में
कब इसका विश्वास रहा है ?
आँखों को मृग-तृष्णा पर
आकर्षित होने का
श्रमधारा
अपनी मंज़िल से परिचित है !
श्रमधारा
श्रमिकों की दुनिया बहुत बड़ी !
सागर की लहरों से लेकर
अम्बर तक फैली !
इनका कोई अपना देश नहीं,
काला, गोरा, पीला भेष नहीं !
सारी दुनिया के श्रमिकों का जीवन,
सारी दुनिया के श्रमिकों की धड़कन
कोई अलग नहीं !
कर सकती भौगोलिक सीमाएँ तक
इनको विलग नहीं !
श्रमिकों की दुनिया बहुत बड़ी !
जवाब देंहटाएंसागर की लहरों से लेकर
अम्बर तक फैली !!
सहमत !!
बेहतरीन कविता ।
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