कवि, एकांकीकार, कथाकार और अपने समय की विराट प्रतिभा भुवनेश्वर ने हिंदी के साथ अंग्रेजी में भी कुछ कविताएं लिखी थीं। 5 अगस्त, 1936 को लिखी गई कविता Romance of Spermetozoa अर्थात 'शुक्राणु का रोमांस' अपनी तरह की अनुपम कविता है। करीब 75 साल पहले लिखी गई इस कविता में कितनी गहरी वैज्ञानिक चेतना है, यह इसे पढ़कर महसूस किया जा सकता है। इस कविता का पहला अनुवाद भुवनेश्वर के मित्र और कवि-कथाकार रमेश बख्शी ने किया था। अपने समय की भाषिक जरूरत के मुताबिक मैंने इसका फिर से अनुवाद किया है।
ठीक दुर्गद्वार पर ही
लड़े योद्धा
ठीक दुर्गद्वार पर ही
जिसे कहते हैं अंडाणु
उसकी हुई अंतहीन लड़ाई
शुक्राणुओं के साथ
बेखबर, प्रेमांध, घायल, परेशान और थकान से चूर
एक पुरुष और एक स्त्री के बाजू
जकड़ गए वहशत में
पसीने में लथपथ, डूबते-उतराते एक दूसरे में
मरने की हद तक समाहित होते हुए
और ठीक दरवाजे पर
चल रहा था एक युद्ध
जहां मौत-सी खामोशी थी
और खामोश थी मौत
तभी निकल कर आया विजेता
उस दिन का शूरवीर सूरमा
दाखिल हुआ उस दुर्ग में वह
जिसे कहते हैं डिंब
उसने उस स्त्री का आंखों में आंखें डालकर देखा
स्त्री जिसे उसने प्रेम किया
स्त्री जिसे उसने जीता
और फिर स्त्री-पुरुष दोनों
धीरे-धीरे शांत होते चले गए
और फिर कुदरत की वह प्रयोगशाला झनझना उठी
और कांपती चली गई
और समय का पहिया भी
घड़घड़ाहट के साथ घूमता चला गया
हे निढ़ाल आदमी
निराशा के शिकार मनुष्य
हिम्मत और हौंसले के अपने हाथ खोलो
उस विजेता शूरवीर सूरमा के लिए
जो गौरवान्वित है कामदेव-सा
और अब भी है तुम्हारे ही पक्ष में
वही शूरवीर योद्धा लड़ा था
वही सूरमा विजयी हुआ था
वही विजेता
हमारा जन्मदाता है।
ठीक दुर्गद्वार पर ही
लड़े योद्धा
ठीक दुर्गद्वार पर ही
जिसे कहते हैं अंडाणु
उसकी हुई अंतहीन लड़ाई
शुक्राणुओं के साथ
बेखबर, प्रेमांध, घायल, परेशान और थकान से चूर
एक पुरुष और एक स्त्री के बाजू
जकड़ गए वहशत में
पसीने में लथपथ, डूबते-उतराते एक दूसरे में
मरने की हद तक समाहित होते हुए
और ठीक दरवाजे पर
चल रहा था एक युद्ध
जहां मौत-सी खामोशी थी
और खामोश थी मौत
तभी निकल कर आया विजेता
उस दिन का शूरवीर सूरमा
दाखिल हुआ उस दुर्ग में वह
जिसे कहते हैं डिंब
उसने उस स्त्री का आंखों में आंखें डालकर देखा
स्त्री जिसे उसने प्रेम किया
स्त्री जिसे उसने जीता
और फिर स्त्री-पुरुष दोनों
धीरे-धीरे शांत होते चले गए
और फिर कुदरत की वह प्रयोगशाला झनझना उठी
और कांपती चली गई
और समय का पहिया भी
घड़घड़ाहट के साथ घूमता चला गया
हे निढ़ाल आदमी
निराशा के शिकार मनुष्य
हिम्मत और हौंसले के अपने हाथ खोलो
उस विजेता शूरवीर सूरमा के लिए
जो गौरवान्वित है कामदेव-सा
और अब भी है तुम्हारे ही पक्ष में
वही शूरवीर योद्धा लड़ा था
वही सूरमा विजयी हुआ था
वही विजेता
हमारा जन्मदाता है।