सोमवार, 27 दिसंबर 2010
प्रगतिशील लेखक संघ की घाटशिला (झारखण्ड) इकाई की पहली बैठक
रविवार, 26 दिसंबर 2010
घाटतशऱा
प्रेस -नोट
(तिति : २६/१२/२०१०)
सेवािथ,
सॊऩादक -
हहन्दस्िान, जमशेदऩुर, प्रभाि खबर, जमशेदऩुर
ु
हॊ स, नई हदल्ऱी, किादे श, नई हदल्ऱी, ऩररकिा, नई हदल्ऱी
ऩाखी, नई हदल्ऱी, किन, नई हदल्ऱी, आजकऱ, नई हदल्ऱी
वसुधा, भोऩाऱ, वागिथ, कोऱकािा
प्रऱेसॊ ब्ऱॉग,
२६ हदसम्बर, घाटतशऱा. आज स्वर्थरेखा क ऩश्चिमी हकनारे ऩर प्रगतिशीऱ ऱेखक सॊघ की घाटतशऱा (झारखण्ड) इकाई की नीव
े
डाऱिे हुए एक सामान्य ऩहऱी बैठक की गई. इसमं स्िानीय सॊयोजक युवा
किाकार शेखर मश्चल्ऱक क अऱावा जमशेदऩुर प्रऱेसॊ और इप्टा से जुड़े कॉमरे ड
े
शतश कमार, जमशेदऩुर से ही "ऩॉख" ऩत्रिका क युवा सॊऩादक अजय 'महिाब'
ु
े
और तनरॊ जन मॊडऱ उऩश्चस्िि िे. बैठक मं कॉमरे ड शतश जी ने घाटतशऱा मं
सॊगठन क तनमाथर् और त्रवकास की बाबि तनदे शात्मक चचाथ की और इसे एक
े
धीमी प्रहिया बिािे हुए और सातियं को साि ऱाने ऩर बािचीि की. कहा हक
,
यह एक नौजवान सभा है , नौजवानं को जुटाना है . काव्य ऩाठ , कहानी ऩाठ
आहद करं ऩहऱे. सॊवाद हो. जमशेदऩुर से ऱोग आयं और कोई त्रवषय रख हदए.
इस ऩर बोऱा जायेगा. अब तनठल्ऱा साहहत्य कोई नहीॊ सुनना चाहिा. त्रवषय
साहहत्य क साि सामाश्चजक सरोकार वाऱे हं. समाज को साहहत्य से जोड़कर त्रवषय ऱगाना. कहा हक श्चजनका िोड़ा भी
े
साहहश्चत्यक टे स्ट हो, उसे बढ़ाया जाय. जािीय और साम्प्रदातयक घृर्ा फ़ऱाने वाऱं से बचने की सऱाह दी.
ै
शेखर मश्चल्ऱक, कॉमरे ड शतश कमार और अजय
ु
रविवार, 19 दिसंबर 2010
प्रगतिशील लेखक संघ घाटशिला की पहली गोष्ठी
प्रिय साथियों
सादर नमन !
प्रगतिशील लेखक संघ,
घाटशिला ।
संपर्क: द्वारा बी. डी. एस. एल. महिला महाविद्यालय,
काशिदा मुख्य मार्ग,
उच्चपथ सं. - 33 के निकट,
घाटशिला, पूर्वी सिंहभूम - 832303,
झारखण्ड ।
मोबाईल - 09852715924
Poems Of Mahendra Bhatnagar
महेंद्रभटनागर
1 नाम : महेंद्रभटनागर
2 जन्म-तिथि : 26 जून 1926
3 जन्म-स्थान : झाँसी (उ.प्र.)
4 शैक्षिक योग्यता : एम.ए., पी-एच.डी. (हिन्दी)
5 व्यवसाय / सम्प्रति : प्रोफ़ेसर / शोध-निर्देशक
6 कृतियाँ
(क) लेखन
काव्य — तारों के गीत (1949), टूटती शृंखलाएँ (1949), बदलता युग (1953) अभियान (1954), अंतराल (1954), विहान (1956), नयी चेतना (1956), मधुरिमा (1959), जिजीविषा (1962), संतरण (1963), चयनिका (1966), बूँद नेह की : दीप हृदय का (1967), कविश्री : महेंद्रभटनागर (1970), महेंद्रभटनागर की कविताएँ (1981), हर सुबह सुहानी हो (1984), संवर्त (1972), संकल्प (1977), जूझते हुए (1984), जीने के लिए (1990), आहत युग (1997), महेंद्रभटनागर के गीत (2001), अनुभूत क्षण(2001), मृत्यु-बोध : जीवन-बोध (2002), ‘महेंद्रभटनागर-समग्र’ (कविता-खंड 1,2,3 / 2002), राग-संवेदन (2005), महेंद्रभटनागर की कविता-गंगा (खंड 1, 2, 3 / 2009), इंद्रधनुष (2010), चाँद, मेरे प्यार! (2010), प्रगतिशील कवि : महेंद्रभटनागर (2010)
आलोचना — आधुनिक साहित्य और कला (1956), दिव्या : विचार और कला (1956), समस्यामूलक उपन्यासकार प्रेमचंद (थीसिस / 1957), विजय-पर्व: एक अध्ययन (1957), नाटककार हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ और ‘संवत्-प्रवर्तन’ (1961), पुण्य-पर्व आलोक (1962), हिन्दी कथा-साहित्य : विविध आयाम (1988), नाट्य-सिद्धांत और हिन्दी नाटक (199), ‘महेंद्रभटनागर-समग्र’ (आलोचना-खंड 4, 5 / 2002) प्रेमचंद कथा-कोश (भाग - 1 / 2010)
लघुकथा — लड़खडाते क़दम (1952), विकृतियाँ (1958), विकृत रेखाएँ : धुधले चित्र (1966), ‘महेंद्रभटनागर-समग्र’ (विविध खंड 6 / 2002)
रूपक-एकांकी — अजेय आलोक (1962), ‘महेंद्रभटनागर-समग्र’ (विविध खंड 6 / 2002)
बाल-किशोर साहित्य — हँस-हँस गाने गाएँ हम! (1957), बच्चों के रूपक (1958), देश-देश की बातें (1967), जय-यात्रा (1971), दादी की कहानियाँ (1974), महेंद्रभटनागर-समग्र (विविध खंड 6 / 2002)
सह-लेखन — हिन्दी साहित्य कोश (भाग — 1 / द्वितीय संस्करण / ज्ञानमंडल, वाराणसी), तुलनात्मक साहित्य विश्वकोश — सिद्धान्त और अनुप्रयोग (खंड — 1 / महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा)
(ख) सम्पादन
‘सन्ध्या’ (मासिक / उज्जैन 1948-49), ‘प्रतिकल्पा’ (त्रैमासिक / उज्जैन 1958)
7 सम्मान / पुरस्कार
(क) ‘कला परिषद्’ मध्य-भारत सरकार ने 1952 में।
(ख) ‘मध्य-प्रदेश शासन साहित्य परिषद्’, भोपाल ने 1958 और 1960 में।
(ग) ‘मध्य-भारत हिन्दी साहित्य सभा’, ग्वालियर ने 1979
(घ) ‘मध्य-प्रदेश साहित्य परिषद्’, भोपाल ने 1985 में।
(च) ‘ग्वालियर साहित्य अकादमी’ द्वारा अलंकरण-सम्मान, 2004
(छ) ‘मध्य-प्रदेश लेखक संघ’, भोपाल ने 2006 में।
(ज) ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग’ / ‘साहित्य वाचस्पति’ / 2010
8 पता — निवास :
110, बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर — 474 002 (म. प्र.)
फ़ोन — 0751-4092908
ई-मेल : drmahendra02@gmail.com
वेबसाइट: www.professormahendrabhatnagar.blogspot.com
महेंद्रभटनागर की कविताएँ
कला-साधना
हर हृदय में
स्नेह की दो बूँद ढल जाएँ
कला की साधना है इसलिए !
.
गीत गाओ
मोम में पाषाण बदलेगा,
तप्त मरुथल में
तरल रस ज्वार मचलेगा !
.
गीत गाओ
शांत झंझावात होगा,
रात का साया
सुनहरा प्रात होगा !
.
गीत गाओ
मृत्यु की सुनसान घाटी में
नया जीवन-विहंगम चहचहाएगा !
मूक रोदन भी चकित हो
ज्योत्स्ना-सा मुसकराएगा !
.
हर हृदय में
जगमगाए दीप
महके मधु-सुरिभ चंदन
कला की अर्चना है इसलिए !
.
गीत गाओ
स्वर्ग से सुंदर धरा होगी,
दूर मानव से जरा होगी,
देव होगा नर,
व नारी अप्सरा होगी !
.
गीत गाओ
त्रस्त जीवन में
सरस मधुमास आ जाए,
डाल पर, हर फूल पर
उल्लास छा जाए !
पुतलियों को
स्वप्न की सौगात आए !
॰
गीत गाओ
विश्व-व्यापी तार पर झंकार कर !
प्रत्येक मानस डोल जाए
प्यार के अनमोल स्वर पर !
॰
हर मनुज में
बोध हो सौन्दर्य का जाग्रत
कला की कामना है इसलिए
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कविता-प्रार्थना
आदमी को
आदमी से जोड़ने वाली,
क्रूर हिंसक भावनाओं की
उमड़ती आँधियों को
मोड़ने वाली,
उनके प्रखर
अंधे वेग को — आवेग को
बढ़
तोड़ने वाली
सबल कविता —
ऋचा है, / इबादत है !
॰
उसके स्वर
मुक्त गूँजें आसमानों में,
उसके अर्थ ध्वनित हों
सहज निश्छल
मधुर रागों भरे
अन्तर-उफ़ानों में !
॰
आदमी को
आदमी से प्यार हो,
सारा विश्व ही
उसका निजी परिवार हो !
हमारी यह
बहुमूल्य वैचारिक विरासत है !
॰
महत्
इस मानसिकता से
रची कविता —
ऋचा है, इबादत है !
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प्रतीक्षक
अभावों का मरुस्थल
लहलहा जाये,
नये भावों भरा जीवन
पुनः पाये,
प्रबल आवेगवाही
गीत गाने दो !
॰
गहरे अँधेरे के शिखर
ढहते चले जाएँ,
उजाले की पताकाएँ
धरा के वक्ष पर
सर्वत्रलहराएँ ,
सजल संवेदना का दीप
हर उर में जलाने दो !
गीत गाने दो !
॰
अनेकों संकटों से युक्त राहें
मुक्त होंगी,
हर तरफ़ से
वृत्त टूटेगा
कँटीले तार का
विद्युत भरे प्रतिरोधकों का,
प्राण-हर विस्तार का !
॰
उत्कीर्ण ऊर्जस्वान
मानस-भूमि पर
विश्वास के अंकुर
जमाने दो !
गीत गाने दो !
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