राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ, जयपुर इकाई के तत्वावधान में रविवार 28 जून, 2009 की शाम राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर के सभागार में श्रीमती राज गुप्ता की ‘प्रखर हुआ जब मौन’ और श्रीमती रेणु जुनेजा की ‘अन्तर्मन के वातायन’ काव्य कृतियों पर चर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
हिन्दी एवं राजस्थानी के समर्थ कवि नन्द भारद्वाज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि रचनाकार समाज की समृद्ध परम्परा को सहेजकर उसमें अपना कुछ नया जोडे़। उन्होंने आज की ज्वलंत चुनौतियों को गहराई से समझने और उसके समाधान के लिए सघन भावाभिव्यक्ति को माध्यम बनाने पर जोर दिया। भारद्वाज का मानना था कि दोनों कवयित्रियां भिन्नता रखते हुए भी काव्य प्रकृति, मन की संवेदना और बुनावट के स्तर पर एक-दूसरे की पूरक जान पड़ती हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति और मनुष्य के बीच अदृश्य रिश्ते को बेहतर ढंग से समझकर उसे वृहत्तर उद्देश्यों से जोड़ते हुए विस्तार देना कवि का महत्वपूर्ण कर्म है। दोनों कवयित्रियां इस दृष्टि से सही जमीन पर खड़ी हुई हैं जो एक शुभ संकेत है। नंद भारद्वाज ने रेणु जुनेजा के संग्रह का लोकार्पण भी किया।
इससे पूर्व राज गुप्ता और रेणु जुनेजा ने नई और संग्रह से चुनी हुई कविताओं का पाठ किया।
सुप्रसिद्ध कथाकार रत्नकुमार सांभरिया ने श्रीमती राज गुप्ता के काव्य संग्रह ‘प्रखर हुआ जब मौन’ पर चर्चा करते हुए कहा कि लगता है कवयित्री ने कुदरत के कहर से खूब संघर्ष किया है। उन्होंने राज गुप्ता के जीवन संघर्ष की चर्चा करते हुए कई कविताओं को उद्ध्रत करते हुए कहा कि दुःख, कठिनाईयां, खाइयों और हृास का हम अहसास कर सकते हैं पर उसका चेहरा हमें दिखाई नहीं देता। उनकी कविताएं बदलते मनुष्य को लेकर सवाल पर सवाल खड़े करती है।
जाने माने व्यंग्यकार एवं कवि फारूक आफरीदी ने कहा कि श्रीमती राज गुप्ता की कविताओं में ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में अपने वे जीवन अनुभवों की गहरी छाप दिखाई पड़ती है। श्रीमती गुप्ता की कविताओं में नारी चेतना के स्वर भी मुखर होकर उभरे हैं। इसी प्रकार रेणु जुनेजा के काव्य संग्रह ‘अन्तर्मन के वातायन’ की कविताएं समय और समाज सापेक्ष हैं। उनमें एक विशेष जिजीविषा के साथ जीवन से लड़ने के लिए संघर्ष के बीज साफ-साफ दिखाई पड़ते है। रेणु की कविताएं रिश्तों की भी सूक्ष्म पड़ताल करती है।
युवा कवि वियजसिंह नाहटा और कवयित्री सुश्री रश्मि भार्गव ने दोनों कवयित्रियों के संग्रहों पर अपनी टिप्पणियों में कहा कि आज के समय को वे बेहतर तरीके से रेखांकित करती हुई प्रतीत होती हैं। इन कविताओं में जीवन का गहरा मर्म छुपा हुआ है तथा सतत संघर्ष की अभिलाषा परिलक्षित होती है। रेणु जुनेजा की किताब पर उन्होंने कहा कि इन कविताओं में मानवमात्र के प्रति वात्सल्य, समाज की बेहतरी की आकांक्षा, अमानवीय के खिलाफ प्रतिरोध और जीवनानुभूतियों का सच्चा चित्रण है।
श्रीमती राज गुप्ता की काव्य कृति पर केप्टन के.एल. सिरोही ने तारादत्त निर्विरोध की टिप्पणी पढ़ कर सुनाई। उन्होंने राज गुप्ता के सामाजिक सेवा कार्यों की भी चर्चा की।
प्रारम्भ में प्रलेस जयपुर इकाई के सचिव ओमेन्द्र ने अतिथियों का स्वागत किया। अंत में इकाई अध्यक्ष गोविन्द माथुर ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन राज. प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव प्रेमचन्द गांधी ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में जयपुर के गणमान्य कवि कथाकार, लेखक, पत्रकार एवं साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
हिन्दी एवं राजस्थानी के समर्थ कवि नन्द भारद्वाज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि रचनाकार समाज की समृद्ध परम्परा को सहेजकर उसमें अपना कुछ नया जोडे़। उन्होंने आज की ज्वलंत चुनौतियों को गहराई से समझने और उसके समाधान के लिए सघन भावाभिव्यक्ति को माध्यम बनाने पर जोर दिया। भारद्वाज का मानना था कि दोनों कवयित्रियां भिन्नता रखते हुए भी काव्य प्रकृति, मन की संवेदना और बुनावट के स्तर पर एक-दूसरे की पूरक जान पड़ती हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति और मनुष्य के बीच अदृश्य रिश्ते को बेहतर ढंग से समझकर उसे वृहत्तर उद्देश्यों से जोड़ते हुए विस्तार देना कवि का महत्वपूर्ण कर्म है। दोनों कवयित्रियां इस दृष्टि से सही जमीन पर खड़ी हुई हैं जो एक शुभ संकेत है। नंद भारद्वाज ने रेणु जुनेजा के संग्रह का लोकार्पण भी किया।
इससे पूर्व राज गुप्ता और रेणु जुनेजा ने नई और संग्रह से चुनी हुई कविताओं का पाठ किया।
सुप्रसिद्ध कथाकार रत्नकुमार सांभरिया ने श्रीमती राज गुप्ता के काव्य संग्रह ‘प्रखर हुआ जब मौन’ पर चर्चा करते हुए कहा कि लगता है कवयित्री ने कुदरत के कहर से खूब संघर्ष किया है। उन्होंने राज गुप्ता के जीवन संघर्ष की चर्चा करते हुए कई कविताओं को उद्ध्रत करते हुए कहा कि दुःख, कठिनाईयां, खाइयों और हृास का हम अहसास कर सकते हैं पर उसका चेहरा हमें दिखाई नहीं देता। उनकी कविताएं बदलते मनुष्य को लेकर सवाल पर सवाल खड़े करती है।
जाने माने व्यंग्यकार एवं कवि फारूक आफरीदी ने कहा कि श्रीमती राज गुप्ता की कविताओं में ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में अपने वे जीवन अनुभवों की गहरी छाप दिखाई पड़ती है। श्रीमती गुप्ता की कविताओं में नारी चेतना के स्वर भी मुखर होकर उभरे हैं। इसी प्रकार रेणु जुनेजा के काव्य संग्रह ‘अन्तर्मन के वातायन’ की कविताएं समय और समाज सापेक्ष हैं। उनमें एक विशेष जिजीविषा के साथ जीवन से लड़ने के लिए संघर्ष के बीज साफ-साफ दिखाई पड़ते है। रेणु की कविताएं रिश्तों की भी सूक्ष्म पड़ताल करती है।
युवा कवि वियजसिंह नाहटा और कवयित्री सुश्री रश्मि भार्गव ने दोनों कवयित्रियों के संग्रहों पर अपनी टिप्पणियों में कहा कि आज के समय को वे बेहतर तरीके से रेखांकित करती हुई प्रतीत होती हैं। इन कविताओं में जीवन का गहरा मर्म छुपा हुआ है तथा सतत संघर्ष की अभिलाषा परिलक्षित होती है। रेणु जुनेजा की किताब पर उन्होंने कहा कि इन कविताओं में मानवमात्र के प्रति वात्सल्य, समाज की बेहतरी की आकांक्षा, अमानवीय के खिलाफ प्रतिरोध और जीवनानुभूतियों का सच्चा चित्रण है।
श्रीमती राज गुप्ता की काव्य कृति पर केप्टन के.एल. सिरोही ने तारादत्त निर्विरोध की टिप्पणी पढ़ कर सुनाई। उन्होंने राज गुप्ता के सामाजिक सेवा कार्यों की भी चर्चा की।
प्रारम्भ में प्रलेस जयपुर इकाई के सचिव ओमेन्द्र ने अतिथियों का स्वागत किया। अंत में इकाई अध्यक्ष गोविन्द माथुर ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन राज. प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव प्रेमचन्द गांधी ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में जयपुर के गणमान्य कवि कथाकार, लेखक, पत्रकार एवं साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
mahoday
जवाब देंहटाएंprakashan hetu yah khabar aap pakhi@pakhi.in per mail kar de. dhanywad.
पत्रिकाओं से पहले ब्लॉग पर रपट पढने का सुख मिला धन्यवाद ,शरद कोकास, प्रलेस दुर्ग-भिलाई यहाँ की रपट भेजने के लिये क्या करना होगा?
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