मज़दूरों का गीत
[महेंद्रभटनागर]
मिल कर क़दम बढ़ाएँ हम
जय, फिर होगी वाम की !
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शोषित जनता जागी है
पीड़ित जनता बाग़ी है
आएँ, सड़कों पर आएँ,
क्या अब चिंता धाम की !
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ना यह अवसर छोड़ेंगे
काल-चक्र को मोडेंगे
शक्लें बदलेंगे, साथी
मूक सुबह की, शाम की !
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नारा अब यह घर-घर है
हर इंसान बराबर है
रोटी जन-जन खाएगा
अपने-अपने काम की !
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झेलें गोली सीने से
लथपथ ख़ून-पसीने से
इज़्ज़त कभी घटेगी ना
‘मेहनतकश’ के नाम की !
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शनिवार, 8 मई 2010
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"शोषित वर्ग को जोश दिलाती कविता है ..."
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