सोमवार, 13 सितंबर 2010

हिन्दी दिवस : 14 सितम्बर

मातृभाषा / महेंद्रभटनागर

गर्भ-भवन में जब-तब हमने

चुपचाप सुनी

अपनी भोली माँ की बोली,

हमें लगी वह जनम-जनम की

जानी / पहचानी!

हमजोली!

और कि जब

इस सुन्दर ग्रह पृथ्वी पर आकर

हमने आँखें खोलीं,

तो सुनी वही फिर

माँ के मुख से

अद्भुत स्नेह-सिक्त

चिर-परिचित भाषा

मधुरस घोली!

बोलूँ मैं भी सहज उसे ही,

कुछ ऐसी जाग उठी थी

मन में अभिलाषा,

देखो, सचमुच,

आज अचानक

साध हृदय की पूरी हो ली!

मेरी माँ की यह बोली — हिन्दी

बड़ी मधुर थी, बड़ी सुघर,

जो बिन सीखे

मेरे मुख से हुई मुखर!

दुनिया की हर माँ की भाषा

हिन्दी जैसी सुन्दर है,

दुनिया की हर माँ

मेरी माँ के मन जैसी मनहर है!

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E-Mail : drmahendra02@gmail.com

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