कला-साधना / कवि
: महेंद्रभटनागर
हर हृदय
में
स्नेह की
दो बूँद
ढल जाएँ,
कला की
साधना है
इसलिए!
गीत गाओ
—
मोम में
पाषाण बदलेगा,
तप्त मरुथल
में
तरल रस-ज्वार मचलेगा!
गीत गाओ
—
शांत झंझावात
होगा,
रात का
साया
सुनहरा प्रात
होगा!
गीत गाओ
—
मृत्यु की
सुनसान घाटी
में
नया जीवन-विहंगम चहचहाएगा!
मूक रोदन
भी चकित
हो
ज्योत्स्ना-सा
मुसकराएगा!
हर हृदय
में
जगमगाए दीप,
महके मधु-सुरिभ चंदन
कला की
अर्चना है
इसलिए!
गीत गाओ
—
स्वर्ग से
सुंदर धरा
होगी,
दूर मानव
से जरा
होगी,
देव होगा
नर,
व नारी अप्सरा होगी!
गीत गाओ
त्रस्त जीवन
में
सरस मधुमास
आ जाए,
डाल पर,
हर फूल
पर
उल्लास छा
जाए,
पुतलियों को
स्वप्न की
सौगात आए!
गीत गाओ
विश्व-व्यापी तार पर
झंकार कर,
प्रत्येक मानस
डोल जाए
प्यार के
अनमोल स्वर
पर!
हर मनुज
में
बोध हो
सौन्दर्य का
जाग्रत
कला की कामना
है इसलिए!
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