श्रम एवं सौन्दर्य का कवि : केदार नाथ अग्रवाल
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जयपुर, १८.९.२०१०
जयपुर प्रगतिशील लेखक संघ एवं पिंकसिटी प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में प्रेस क्लब के मीडिया सेण्टर में शनिवार,१८ सितम्बर '२०१० को प्रगतिशील कवि केदार नाथ अग्रवाल के जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर एक गोष्ठी " श्रम एवं सौन्दर्य का कवि केदार नाथ अग्रवाल " आयोजित की गई . मुख्य वक्ता डा. अशोक त्रिपाठी ने कहा क़ि ' राजा मरते है , शासक मरते है, जनता कभी नहीं मरती , इसलिए जनता के कवि केदार नाथ अग्रवाल की कविता जन जन में सदियों तक जीवित रहेगी ' त्रिपाठी जी ने अपने व्याख्यान में कहा क़ि केदार नाथ अग्रवाल श्रम एवं सौन्दर्य के कवि है. उनकी कविता में मेहनतकश लोगों के सुख और दुःख उनके श्रमशील सोंदर्य के सात व्यक्त होते है. कार्यकर्म के प्रारंभ में जयपुर प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष गोविन्द माथुर ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा क़ि केदार नाथ अग्रवाल प्रगतिशील हिदी कविता क़ि त्रयी के एक पमुख कवि है. कवित्रयी वीना करमचंदानी ने केदार नाथ अग्रवाल क़ि चयनित कविताओं का पाठ किया.
विशिष्ठ वक्ता प्रख्यात कवि ऋतुराज ने कहा क़ि केदार नाथ अग्रवाल छोटी कविताओं के बड़े कवि थे. वे एक पंक्ति में भी बहुत बड़ी और अर्थवान बात कह देते थे. समालोचक नन्द भारद्वाज ने कहा की केदार जी कविता आज़ादी के बाद भारतीय समाज में होने वाले निरंतर परिवर्तनों को बहुत गहराई से और कलात्मक ढंग व्यक्त करती है.
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष डॉ. हेतु भारद्वाज ने कहा की - केदार जी की कविता सहज- सरल भाषा में मनुष्यता की महानता को प्रतिष्ठित करने वाली कविता है.
इस अवसर पर त्रैमासिक पत्रिका ' अक्सर' के १३ वे अंक का लोकार्पण भी किया गया. कर्कर्म का संचालन कथा लेखिका डॉ. लक्ष्मी शर्मा ने किया.
राजस्थान लेखक संघ के महासचिव प्रेम चंद गाँधी ने सभी का धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के आगामी कार्यक्रमों की रूप रेखा बताई .
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
यह होश बनाये रखने का वक़्त है
हाथ जोड़कर एक अपील

24 तारीख़ को बाबरी मस्ज़िद विवाद का हाईकोर्ट से फैसला आना है।
तय है कि यह एक समुदाय के पक्ष में होगा तो दूसरे के ख़िलाफ़। ऐसे में पूरी संभावना है कि लोकतंत्र में विश्वास न रखने वाली ताक़तें 'धर्म के ख़तरे में होने' का नारा लगा कर जनसमुदाय को भड़काने तथा हमारा सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास करेंगी। फ़ैसला आने से पहले ही इसके आसार नज़र आने लगे हैं।
दो दिन बाद … यानि 27 सितम्बर को भगत सिंह का जन्मदिन है। आप जानते हैं कि पंजाब में उस वक़्त फैले दंगों के बीच भगत सिंह ने 'सांप्रदायिक दंगे और उनका इलाज़' लेख में सांप्रदायिक ताक़तों को ललकारते हुए कहा था कि दंगो की आड़ में नेता अपना खेल खेलते हैं और असली मर्ज़ यानि कि विषमता पर कोई बात नहीं होती।
इन दंगो ने हमसे पहले भी अनगिनत अपने और हमारा आपसी प्रेम छीना है। आईये आज मिलकर ठंढे दिमाग़ से यह प्रण करें कि अगर ऐसा महौल बनाने की कोशिश होती है तो हम इसकी मुखालफ़त करेंगे…और कुछ नहीं तो हम इसमें शामिल नहीं होंगे।
ग्वालियर में हमने इस आशय के एस एम एस व्यापक पैमाने पर किये हैं। आप सबसे भी हमारी अपील इसी संदेश को जन-जन तक पहुंचाने की है।
आईये भगत सिंह को याद करें और सांप्रदायिक ताक़तों को बर्बाद करें। यह एक ख़ुशहाल देश बनाने में हमारा
सबसे बड़ा योगदान होगा।

हमने इस साल भगत सिंह के जन्मदिन को 'क़ौमी एकता दिवस' के रूप में मनाने का भी फैसला किया है।
सोमवार, 13 सितंबर 2010
हिन्दी दिवस : 14 सितम्बर
मातृभाषा / महेंद्रभटनागर
॰
गर्भ-भवन में जब-तब हमने
चुपचाप सुनी
अपनी भोली माँ की बोली,
हमें लगी वह जनम-जनम की
जानी / पहचानी!
हमजोली!
॰
और कि जब
इस सुन्दर ग्रह पृथ्वी पर आकर
हमने आँखें खोलीं,
तो सुनी वही फिर
माँ के मुख से
अद्भुत स्नेह-सिक्त
चिर-परिचित भाषा
मधुरस घोली!
॰
बोलूँ मैं भी सहज उसे ही,
कुछ ऐसी जाग उठी थी
मन में अभिलाषा,
देखो, सचमुच,
आज अचानक
साध हृदय की पूरी हो ली!
॰
मेरी माँ की यह बोली — हिन्दी
बड़ी मधुर थी, बड़ी सुघर,
जो बिन सीखे
मेरे मुख से हुई मुखर!
॰
दुनिया की हर माँ की भाषा
हिन्दी जैसी सुन्दर है,
दुनिया की हर माँ
मेरी माँ के मन जैसी मनहर है!
¤
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
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